लेखनी कहानी -भिक्षुक का जादू भाग ३
भिक्षुक का जादू भाग 3
अगस्त चंद्रमा उत्सव के दिन गांव के चौराहे की ओर जाने वाला रास्ता उन किसान और व्यापारियों से भरा हुआ था जो बाजार में बेचने के लिए अपना सामान ले जा रहे थे। फू नान के माता-पिता गोभी की टोकरियां उठाये हुए बाजार की ओर जा रहे थे। जब फू नान ने भिक्षुक सन्यासी को देखा तो उसने माता पिता से पूछा कि क्या वे वृद्ध संन्यासी के साथ साथ चल सकता था।
फू नान उस बृद्ध को नई पतंग के बारे में बताने लगा जो वे जन्मदिन पर मिले पैसों से खरीदना चाहता था। अचानक उसके रास्ते पर कुछ हंगामा होने लगा। किसान वू का गधा जो नाशपातियों से भरा हुआ ठेला खींच रहा था, भीड़भाड़ वाले रास्ते पर सबको तीतर बितर करता हुआ दौड़ने लगा। भारी बोझ से दवे गधे को ओर तेज दौड़ने के लिए किसान वू उसे पीट रहा था और उस पर चिल्ला रहा था।
जब तक फू नान और वृद्ध संन्यासी गांव के बाजार में पहुंचे, किसान वू भी अपने ठेले पर लगी नाशपतियाँ बेच रहा था। सूर्य की गर्मी के कारण सबको प्यास लग रही थी और मीठी रसभरी, नाशपाती खूब बिक रही थी। यद्यपि किसान वू भारी दाम मांग रहा था।
“एक स्वादिष्ट नाशपाती मुझे खाने के लिए दे सकते हो”, सन्यासी ने किसानों वू से पूछा। “फटीचर भिकारी तुम्हें कुछ ना मिलेगा”, किसान वू उन चिल्लाया। “लेकिन तुम्हारे पास तो बहुत सारी नाशपाती हैं , निश्चय ही तुम एक नाशपाती दे सकते हो”वृद्ध ने कहा। यह देख कई लोग इकट्ठे हो गए। किसी ने कहा इतने कंजूस मत बनो वृद्ध को एक नाशपाती दे दो। किसान वू ने गुस्से से अपनी लाठी घुमाई और सन्यासी को बुरा भला कहा।
बालक फू नान ने जब यह देखा तो पतंग खरीदने का सपना जो वह देख रहा था उसको बुला कर उसने अपनी जेब में हाथ डाला। “पतंग में बाद में भी ले सकता हूं” उसने अपने अपने आप से कहा और झटपट किशन वू को अपना सिक्का दे दिए।
जन्मदिन के उसके सारे पैसों में सिर्फ एक छोटी नाशपाती ही मिली। सन्यासी कहीं यह देखन न ले कि पतंग पाने की इतनी तीव्र इच्छा उसके मन में थी। फू फोन नीचे धूल भरी जमीन की ओर देखते हुए अपने दोनों हाथों में रखकर नाशपाती उन्हें भेंट की।
झुक कर धन्यवाद करने के बाद वृद्ध ने लोगों से बात की। ” क्योंकि आप में से कई लोगों ने अपना भोजन मेरे साथ बांटा है।”, उन्होंने कहा। “मैं हर एक को एक स्वादिष्ट नाशपाती खिलाऊंगा।” वह गांव के चौराहे में टहलते हुए आगे चले। भीड़ उनके साथ आती रही और अन्य लोगों की तरह उत्सुक किसान वू भी भीड़ के पीछे चलता रहा।